Tuesday 22 January 2013

समाज के प्रति

समाज के प्रति सकारात्मक चिंतन और राजनीति में उस चिंतन को कार्यरूप में परिणित करना ..दोनों के मध्य बहुत बड़ा विरोधाभास है ..परिवर्तन की प्रक्रिया इतनी धीमी होती है ..नहीं के बराबर /





समाज हो या राजनीतिग्य ..अन्तत: चिंतन का परिणाम व्योक्तिओ के आचरण पर जा टिकता हैं /
जाति प्रथा हो ,धार्मिक उन्माद हो ,या नारी उत्पीडन हो ..सभी समाज की ईकाई "परिवार के व्यवहार पर" आधारित हैं ,परिवार अपने कुसंस्कारों को त्यागने पर बरसों लगा देते हैं

उदाहरण के लिए वर्तमान परिवेश में नारियों पर होने वाले अन्याय के प्रति उपेक्षा का भाव भी जैसे ठीक नहीं हैं /
किशोर कुमार खोरेन्द्र

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